एक लम्हा ( a short poem)
एक लम्हा
टूट के भी टूट जाऊं
ये मुझे गंवारा नहीं
मिल के भी मिल ना पाऊं
इस बात का सहारा नहीं
तू रूह है
तू ही आरज़ू
तेरा मुझे छोड़ कर जाना
ये तख़्त भी लाना गंवारा नहीं
टूट के तो समंदर भी मिलते है
किनारा तो उनका भी सहारा नहीं
बस एक आरज़ू है की मिल जाऊं
न मिल सकूँ ये सोचना भी ,
मुझे गंवारा नहीं
मिल के भी मिल ना पाऊं ,
इस बात का सहारा नहीं। ...
(अमित तिवारी )-
Very nice,.
ReplyDeletethank u
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