कोरोना और हम - एक कविता
तूफ़ान के हालात है ना किसी सफर में रहो...
पंछियों से है गुज़ारिश अपने शहर में रहो...
ईद के चाँद हो अपने ही घरवालो के लिए...
ये उनकी खुशकिस्मती है उनकी नज़र में रहो...
माना बंजारों की तरह घूमे हो डगर डगर...
वक़्त का तक़ाज़ा है अपने ही शहर में रहो...
तुम ने खाक़ छानी है हर गली चौबारे की...
थोड़े दिन की तो बात है अपने घर में रहो...
🌹🌻🌞
पंछियों से है गुज़ारिश अपने शहर में रहो...
ईद के चाँद हो अपने ही घरवालो के लिए...
ये उनकी खुशकिस्मती है उनकी नज़र में रहो...
माना बंजारों की तरह घूमे हो डगर डगर...
वक़्त का तक़ाज़ा है अपने ही शहर में रहो...
तुम ने खाक़ छानी है हर गली चौबारे की...
थोड़े दिन की तो बात है अपने घर में रहो...
🌹🌻🌞
Nice
ReplyDeleteThank u
DeleteBohot khoob Amit bhai..
ReplyDelete😍😍😍😍
Thanx bhai
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