वो गारीब का बच्चा था- a short poem
रहो में काँटे थे
फिर भी वो चलना सिख गया
वो गारीब का बच्चा था साहब
दर्द में जीना सिख गया
मजूरिया तो उसकी आदत सी बन गई
इस जहर को भी पीना सिख गया
वो गारीब का बच्चा था साहब
दर्द में जीना सिख गया
रोटी मिलेगी की नहीं इसका क्या पता था उसको
आखिर कार वो भूखा रहना सिख गया
वो गारीब का बच्चा था साहब
दर्द में जीना सिख गया
फिर भी वो चलना सिख गया
वो गारीब का बच्चा था साहब
दर्द में जीना सिख गया
मजूरिया तो उसकी आदत सी बन गई
इस जहर को भी पीना सिख गया
वो गारीब का बच्चा था साहब
दर्द में जीना सिख गया
रोटी मिलेगी की नहीं इसका क्या पता था उसको
आखिर कार वो भूखा रहना सिख गया
वो गारीब का बच्चा था साहब
दर्द में जीना सिख गया
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