देह त्याग जब कोई चला जाता है - lockdown ke time par kuch line
न कोई रूप है.. न है ठिकाना
कहने को रहता है साथ सारा जमाना। ...
शहर भी घुमा लोग भी देखे
मगर मुसीबत में लोगो के तेवर भी देखे
देह त्याग जब कोई चला जाता है
तो हर कोई बस उसे राम राम सुनाता है
समाज की अब क्या हालत बताई जाए
एक हो तो न समझाई जाए
यहाँ लोग मजबूर हुए बैठे है
कमाया जहाँ। .... जिए सपने हज़ार थे
वहां खाने की इस जंग में चकना चूर बैठे हुए है
अब तो अपना गांव ही भला लगता है
न कुछ ...कम से कम अपना तो लगता है
🔰(अमित तिवारी)🔰
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1)वो मुझे भूलने की कोशिश
2)तुमने कब्र का इंतज़ाम कर लिया।
3)वफ़ा का रंग
4)इंसान कम यहाँ तो किरायदार मिलते है
5)ये नुमाइश मोहब्बत की
1)वो मुझे भूलने की कोशिश
2)तुमने कब्र का इंतज़ाम कर लिया।
3)वफ़ा का रंग
4)इंसान कम यहाँ तो किरायदार मिलते है
5)ये नुमाइश मोहब्बत की
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